एक सोच एक विचार एक संदेश
एक *व्यवहार तक सोचना तो *ठीक है, अन्य के बारे में जानकारी तक भी ठीक है, एक बात तो तय है और वो ये कि:- *धार्मिक आदमी पत्थर/ठीकर, पशु-पक्षी, जीव-जंतु में उस सर्वशक्तिमान को महसूस कर लेता है, लेकिन दीनहीन/कमजोर/असहाय महसूस कर रहे व्यक्ति में उसके दर्शन करना भूल जाता है, परिणाम मनुष्य में भेद कर चंद चालाक लोग अपने हिस्सा पक्का कर लेता है, ये जो प्रतिक्रिया आपस में नेता एवं पार्टियां संगठन प्रस्तुत कर रहे है, लोकतंत्र में उदाहरण हो ही नहीं सकते, राजतंत्र भी नहीं, चारों स्तंभ जैसे ध्वस्त हो चुके हो, . धर्म एक तरह का अभ्यास है, धर्म की आड़ में राजनीति भूखे लोगों का पेट कैसे भर सकती है, भारत की जनसंख्या ही उसकी ताकत है, जिस कारण आज वैश्विक नजर भारत पर है, एक साथ इतने उपभोक्ता, मानव- संसाधन जहाँ संभावनाएं जैसे स्वर्ग खदान हो, पारदर्शिता का अभाव जैसे आज भी झूठे काल्पनिक तथाकथित अदृश्य शक्ति के कारण सब घटित हो रहा हो, वर्तमान *परिदृश्य "मुँह में राम बगल में छुरी" आप भूखे है और मांगने पर भी रोटी ना मिले, रोटी छीनने को क्रांति का बिगुल समझे. इतिहास गवाह है. आप क...