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Showing posts from 2020

तलाश

दो रोटी की आश में सुकून की तलाश में दर दर भटकता रहा दो रोटी की आश में स्वाभिमान लिए मन में हुनर था हाथ में जमीर लिये साथ में दो रोटी की आश में कुछ प्रमाण-पत्र थे मेरे पास में जाति प्रभावी देश में आस्था बस्ती जहां भेष में दो रोटी की आश में कहते है कर्म से श्रेष्ठ हो, जन्म से निकृष्ट शूद्र अछूत हो, मंदिर में प्रवेश नहीं, आओ चाहे जिस भेष में, मनोबल जहाँ बढता हो, पतित से पावन हो, धोखा है वहाँ पर भी, पहचानता जो तन से नहीं पहनावे से पहचान हो. दो रोटी की आश में देखकर थकती सांस को, त्याग हुआ जो था साथ में दो गज जमीं न थी पास में आत्मनिर्भर था, लगा रहा दो रोटी की आश में, दो गज जमीं की तलाश में, महेन्द्र सिंह हंस

आत्मनिर्भर भारत योजना की आड़

सरकारी नई योजना की आत्मा ************************ आत्मनिर्भर_भारत से तात्पर्य सभी अपने पुस्तैनी धंधे संभाले और देशहित राष्ट्रवाद में आहुति दे. . इन झूठे/पाखंड/बेईमान सत्ताधारियों का यही देशहित/राष्ट्रवाद में प्रचार . अज्ञात भय के कारण ***************** क्रोध वा कट्टरता का जनक अज्ञात भय होता है, फिर वह चाहे कमी छुपाने के मकसद से हो या प्राण रक्षा हेतू सम्पदाओं पर एकाधिकार के लिये हो, कुछ खोने के डर मात्र के लिए हो, 👉 अज्ञात भय 👈 सभ्यता/संस्कृति/रीति/परंपरा की आड़ में फूट डालने वा खुद के परिचय में बाधा के मकसद से हो, ताकि मजहब खंड-खंड रहे. मेरा ऐसा मानना है. और धरातल पर भी यही नजर आता है. . Metaphysics statics Beyond the mind 🖕✍️

एक सोच एक विचार एक संदेश

एक *व्यवहार तक सोचना तो *ठीक है, अन्य के बारे में जानकारी तक भी ठीक है, एक बात तो तय है और वो ये कि:- *धार्मिक आदमी पत्थर/ठीकर, पशु-पक्षी, जीव-जंतु में उस सर्वशक्तिमान को महसूस कर लेता है, लेकिन दीनहीन/कमजोर/असहाय महसूस कर रहे व्यक्ति में उसके दर्शन करना भूल जाता है, परिणाम मनुष्य में भेद कर चंद चालाक लोग अपने हिस्सा पक्का कर लेता है, ये जो प्रतिक्रिया आपस में नेता एवं पार्टियां संगठन प्रस्तुत कर रहे है, लोकतंत्र में उदाहरण हो ही नहीं सकते, राजतंत्र भी नहीं, चारों स्तंभ जैसे ध्वस्त हो चुके हो, . धर्म एक तरह का अभ्यास है, धर्म की आड़ में राजनीति भूखे लोगों का पेट कैसे भर सकती है, भारत की जनसंख्या ही उसकी ताकत है, जिस कारण आज वैश्विक नजर भारत पर है, एक साथ इतने उपभोक्ता, मानव- संसाधन जहाँ संभावनाएं जैसे स्वर्ग खदान हो, पारदर्शिता का अभाव जैसे आज भी झूठे काल्पनिक तथाकथित अदृश्य शक्ति के कारण सब घटित हो रहा हो, वर्तमान *परिदृश्य "मुँह में राम बगल में छुरी" आप भूखे है और मांगने पर भी रोटी ना मिले, रोटी छीनने को क्रांति का बिगुल समझे. इतिहास गवाह है. आप क

विरोध या समर्थन/पक्ष या विपक्ष

निंदा यानि आलोचना तर्क-वितर्क विरोध या समर्थन, पक्ष या विपक्ष ये सब व्यवाहरिक कड़ियांं दो छौर जिनके बीच व्यवहार होता है गति प्रगति के लिए दोनों आवश्यक. लेकिन बीच का मार्ग अवरुद्ध ना हो. तब सिक्का पूरे का पूरा तुम्हारा है. हैड या टेल सिर्फ़ आरंभ का आगाज़ मात्र जब विरोध या समर्थन की बात आती है आदमी की मंशा बाहर आती है. वह बाह्य सह-संबंध खोजता है. फायदे किसमें ज्यादा है. जैसे जाति/वर्ण/धर्म समुदाय लेनदेन/काट-छांट फिर *विरोध या *समर्थन अब व्यवहार के पहिये राजनीति/धर्म/चरित्र/आदत/व्यवसाय सबके सब जैसे विरोध वा समर्थन के ??? जैसे चुम्बकीय क्षेत्र दो विरोधी जैसे विदेशी यात्रा पर. मानों चाल थम सी गई हो. क्यों ? भारत एक संवैधानिक लोकतांत्रिक देश है. यहां व्यवस्था दो दलीय न होकर. बहु-दलीय व्यवस्था .....???? विरोध वा समर्थन के जिंदा उदाहरण. पक्ष या विपक्ष अपनी जवाबदेही/जिम्मेदारी समझे.

अदृश्य शक्तियां

अदृश्य शक्तियों से लडना, और डरकर भाग जाना, किसी ईश्वर, अल्लाह, मसीह को रक्षक मान कर वह आपकी रक्षा, मनोबल,उन्नति, सफलता का ठेकेदार बनेगा, प्रथम दृष्टया हार मान लेना जैसे होगा, आस्था वा विश्वास प्रक्रिया बिन किये अपना मान लेना, किसी एक के खाना खाने से शेष परिवार का पेट भर जाने जैसा होगा, हाँ कुछ वर्ग जैसे वृद्ध, असहाय, मंदबुद्धि तर्क-वितर्क की क्षमता के विहीन आलसी, तामसिक मनुष्य अंध-श्रृद्धा रखकर हिम्मत प्राप्त कर सकते है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में जो साक्षर लोग इस पंक्ति के प्रारंभिक पायदान के आरंभ में खडें है, व्यवसायी, बिजनेस मैन स्व-व्यवसायी और नौकरी यानि नौकर, इसमें सबसे अधिक लोग नौकर मानसिकता के है. खुद को सिक्योर यानि आपदा रहित मानते है, यहाँ से हार्डवर्कर और स्मार्ट वर्कर की श्रेणी शुरू होती है, अब आप ही सोचें समझे. आप धार्मिक क्यों है, आप आस्तिक क्यों है, आजतक आप से पहले जो प्रश्न हल हो जाने चाहिए थे, आज भी क्यों खड़े है, 👇 कबीर साहेब का दोहा सटीक बैठता है, कबीर भाषा अटपटी,  झटपट लखि न जाय, जै झटपट लख जाय, सब खटपट मिट जाय.

पत्राचार बनाम ईमेल

पत्र के अंत में लिखा जाना, 👇 बाकि आप स्वयं समझदार हैं, और क्या लिखूं ... ईमेल से गायब है, भारतीय डाक का स्थान भले इंटरनेट ने ले लिया हो लेकिन भावनाओं के इंटरनेट से अभी भी काफी पीछे, हिचकियों का आना, कोई याद कर रहा समझ जाना, बॉडी लैंग्वेज आदमी की आँख फड़कने पर, फल शुभाशुभ दायी/बाई पर लिंगभेद प्रभावी, घर से निकलना ..किसी का छींक देना. श्लोगन बनना, छींकत खाइये छींकत नहाइये, छींकत मत जाइये, एक मानसिक आधार पैदा कर, पहले ही परिणाम सुनिश्चित कर लेना, हमारी पुरानी आदत है, घर से निकलना, भरे घडे का सामने से आना, झट से निकालकर आना, घडे में डालना, खुद को सफल मान मान सकारात्मक हो जाना, आटा गूथना, आगे से तोडकर जरा सा पीछे लगा देना, पहली रोटी गाय की, आखरी कुत्ते की, भले जानकारी हो न हो, सबका भला हो, मंशा को जन्म देती थी, चाय का कप लेकर हाथ में, ऊँगली डूबाकर, धरती पर छींटे मारना, भले मालूम नहीं, आधार कोई हो न हो, चाय की तासीर गर्म है के ठंडी जरूर बताती है, तुलसी, वट,पीपल को पूजना, भले यांत्रिक हो, लेकिन शरीर के लिए अच्छे है अवश्य बताते हैं, यादगार लम्हें जिंदगी थम सी

भिक्षु

कुछ सिखना हो कोई जरूरत हो भिक्षा-पात्र खाली ले जाना, दातार पर भरोसा हो, खाली वापिस नहीं भेजता. . तुम्हारे त्याग की परीक्षा होगी, तुम ब्रह्मांड के मालिक हो. मिलेगा वही. जितनी तुम्हारी तैयारी है. . फैल गये संदेश प्रेम का लेकर, जहां तक संभव तमस दूर हो, नहीं डरे रहे डटे न लड़े न भागे वरन् परिस्थितियों के प्रति जागे .

जायजा

याद रखना भले भूल जाना, याद रखना भले भूल जाना, ये जो परिवेश है, तुम्हारा अपना है, जिम्मेदार बनो या श्रीकृष्ण कह दो. एक परिंदा जो उड़ता है आकाश में, तुम्हारे घरों की छत भले शहर हो या गाँव हो ! धूप की भी है उसे खबर, भूल गया तू तुझे नहीं है खबर, पेट भरता नहीं या नहीं है खबर, परिंदों को भी है खबर, तेरी व्यवस्था इधर या उधर, बंधन हैं तुम्हारे अपने, पहरे सीमाओं से होंगे जिधर, वो धार्मिक ही नहीं, जो छीन ले निवाले, उसके होने के नाम पर,

परीक्षा

रहे हमेशा तैयार, करते रहे प्यार, छोड़ कर दासता, रखें खुद से वास्ता, . दर दर की ठोकरें, किसका मलाल छौकरे, पग पग खडी है परीक्षा, क्यों लड़ना भागना क्यों, . रहें हमेशा तैयार, करते रहे प्यार, . कब तक सोये रहोगे, उतना ही खोते जाओगे, मना लो जागरण, प्रेम उमड़ आयेगा, . रहे हमेशा तैयार, करते रहे प्यार, . गुरु बनेगी तेरी ही चेतना, मिट जायेगी सब वेदना, चाहे जिसे तुम भेदना, संजीदा रखें बस संवेदना, . रहे हमेशा तैयार, करते रहे प्यार, . प्रकृति अस्तित्व नहीं कोई योजना, ये ही है वो रहस्य, जिसे सबको है जानना, विरासत नहीं ये किसी की, . रहे हमेशा तैयार, करते रहे प्यार.

चैन भी बेचैन

चैन भी बेचैन जागे सारी रैन रैन बसेरा सोये सुबेरा छूट गया सहारा चुके न कर्ज़ भूल गये फर्ज़ सिखना तर्क पकड सको मर्ज ये मृत्यु नहीं, हत्या है. भूखे भी प्यासे भी, विलुप्त साधन संसाधन, थाली बजे, पैदाइश गायब, ताली बजाते. डरे हुए सब, मोमबत्तियां जले फूटते पटाखे वंचितों के अधिकार, हाशिये पर लगे, गिरते है फूल गिरे जिनके लिए, बोझिल झोली, न सिर्फ़ फटी, दुबारा सिल न सकी, प्रकृति ने जिसे, सबको दिया, खुली हवा, लाल सूरज, लिया छुपा, ये मृत्यु सहज नहीं, सरेआम हत्या है. हंस जो निहत्था है.

ईश्वरीय नहीं इंसानी विनाश का मॉडल

IITian मुख्यमंत्री है B.Tech कवि "कोई दिवाना कहता है, M.B.B.S चिकित्सक कोई सांसद तो कोई spokesperson. Ayush वाले भी कोई मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद, तो कोई contract base पर आजीविका का मोहताज़, जिनके पास कोई डिग्री/डिप्लोमा नहीं, वे बडी बडी संस्थाओं के मालिक मेरे आसपास. फार्मेसी पंजीकृत नामांकरण किसी के नाम बैठा महारथी है मैट्रिक परीक्षा खास. . मतलब पढाई तय नहीं करती आपका कार्यक्षमता कार्यक्षेत्र क्या होगा, नेता का बेटा नेता, डॉक्टर का बेटा डाक्टर चाहे देना पड़े डोनेशन कई लाख, पूँजीवादी अय्याशी विशेष. सजदे CEO समूह के खास. . जिससे पास नहीं कोई डिग्री मैनेजिंग डायरेक्टर उनके साथ, जनता तय करती पहुंचे उनके पास, है झोलाछाप खास या mbbs पास. . स्वामी बन बनाते रणनीति खास, करें दान दिल खोलकर होगी उन्नति खास, पत्थर ठीकर हैं नहीं चीज़ कोई खास. जर,जोरू और जमीन लडाई की जड़ तीनों, नहीं संभलने वाली तुमसे हम साधु खास. मुँह में राम बगल में छुरी चिंतन खास हमरे पास. . पंडित ज्योतिषी जन्मकुंडली के कौन आधार, जो जन्मभूमि, कर्मभूमि रणभूमि तय कर सकी ना प्रकट हुए न आसपास... .

संपादकीय कोविड19 पर दो बुद्धिजीवी.

Dr. Yashwant Choudhary from Facebook channel (Sikar Times) criticize Dr. Biswaroop Roy Chowdhury. सम्पादकीय:- डॉक्टर यशवंत चौधरी अपने "सीकर टाइम्स" फेशबुक चैनल पर विडिओ मे कुछ ऐसा कहते हैं. डॉ. बिश्वारूप बंगाल साइड के चौधुरी है. यशवंत राजस्थान साइड के. वे आप से रिलेट नहीं करते. अब हरियाणा और यूपी से भी शेष है. यशवंत को वे नकली चौधरी लगते है. सचेत रहने की सलाह देते है. जबकि डॉ.बिश्वारूप रॉय चौधुरी. मधुमेह विषय पर Ph.D हैं.  रक्तचाप कैंसर जीवनशैली से जुडी बिमारियों का Diet Management द्वारा 3 day step से बुखार, शूगर, आदि ठीक करते है. शरीर को चिकित्सक मानते है. डॉक्टर साहब दूसरों पर नजर या आकलन में कई बार आदमी, खुद की बड़ी गलतियों से चूक जाता है. अब ये भी चलन पडेगा. मैं हरियाणा का यादव राव साहब हूँ. बिहार उत्तरप्रदेश वाला नहीं. कल को उपजातियों में श्रेष्ठता को लेकर विषय उठेगा. . वे diabetes m में Ph.D हैं आपका विषय अलग है.आप भी Ph.D होंगे. या आपने अपना विषय का जिक्र किया है. आप Drug Bacteriology, Virology पर कुछ हैं. Scam क्या है. संदेश ??? आप

मजदूर की व्यथा

एक मई विश्व मजदूर दिवस पर. पुस्तक "जीवन एक अभिव्यक्ति" लेखक:- डॉ. महेन्द्र सिंह हंस. प्रकाशन:- राजमंगल पब्लिशर्स *मजदूर की व्यथा* दो वक्त की रोटी को, जिंदगी छोटी पड़ जाती है, सुबहा का निवाला खाकर, जब धूप निकल आती है. . दिनभर सहा कष्ट भरपूर, कष्ट और गहरा जाता है, मिलती नहीं पगार, जब भूखे ही सोना पड़ जाता है, . लाया था फटे पुराने कत्तर, चुग बीणकर, बैंया पक्षी को घोंसला बुनते देखकर, तम्बू बनाया इनको गूथकर, कंप कपाती ठण्ड से बच पांऊगा, ऐसा सोचकर, कमेटी वालों ने, इसे भी तोड़ दिया, गैर कानूनी सोचकर. . जीवन एक मजदूर का, है अति-कठिनाइयों से भरा हुआ, सेठ लोग भी ये कहते है, हम भी निकले हैं इसी दौर से, हम भी तो कभी मजदूर थे, वो पूर्वज थे आपके, जो सेठ कहलवा गये, वरन् मजदूरी कैसे होती है. मालूम नहीं आज आपको, . पूरे दिन साहब साहब मजदूर करे, देते नहीं फूटी कौडी पास से, रोते बिलखते होंगे बच्चे उनके भी, फिर भी दिल विनम्र होता नहीं. . दो वक्त की रोटी को, जिंदगी छोटी पड़ जाती है, सुबहा का निवाला खाकर, जब धूप निकल आती है. (अर्थात सूर्योदय से पहले उठकर म

सिक्के व्यवहारिक होते है (लेख)

भले सिक्के जिंदगी में व्यवहारिक होते हैं, वे भी केवल मनुष्यों में, परिवार/समाज/देश/विदेश/मुद्रा पर व्यवहार चलन में है, बात तोलने की हो, बात पहलुओं की हो, बात क्षमता की हो, बात सिक्कों के खनक की हो, बात ईमान/बेईमानी की हो, बात संपदा/वैभव/राजपाट की हो, कहावत :- जिसके कमलेविच् दाने.. उसके पगले भी सियाणे. बात विचारधारा/चलन/रीत-रिवाज/धार्मिक-आधार इससे वंचित नहीं है. धार्मिक ठगी, जगजाहिर है, कर्म के आधार पर विभाजन हो, या जातिगत आधार. सबके पीछे मूलभूत आधार सिक्के ही है. प्रथा चाहे विधान/मनुस्मृति जनेऊ-क्रांति हो, जमींदार-प्रथा हो, स्त्रियों को दाँव पर लगाने की हो, या फिर ढोर यानि आधार गाय या गोपाल की लीला केंद्र हो, भेदभाव के पर्दे के पीछे आधार चंद सिक्कों के खनक की ही मिलेगी, शूद्र वर्ग के लोगों और उनकी विवाहताओं पर प्रथम अधिकार जनेऊधारी का होगा, न उन्हें संपत्ति संपदा तो दूर की बात, सार्वजनिक स्थलों पर जाने की रोक, बल्कि बहिष्कृत कर जंगलों या असुरक्षित स्थानों पर रहने को मजबूर किया गया, वैसे तो वो बलिष्ठ थे, लेकिन मानसिकता को कुचला गया, ताकि वे हीनभावना से ग्रसित

साँस बिन प्राण

सांस ही गवाह है गर जीवंत होने के आयाम ये ढेरों घूमते बेजुबान करते नहीं *प्राणायाम. . माँगते नहीं खोजते हैं, मीलों घूम घूमकर, खाते है घास फूँस, मारे गये चुन चुनकर. . कल का जिक्र इतिहास था, कल की चर्चा भविष्य भी, वर्तमान कल का किस्सा है भविष्य वर्तमान के क्षण भी.

नेता सेवक कैसे

दे न पाये जो व्यवस्था, छीन ले जो रोटियां, बोटियाँ तुम्हें मुबारक, जो हमारा है वही दे दो, . तुम्हें तमगे चाहिए ले लो, तमाशा न करो, तमाचा भी बनता है, आम जनता से मिलकर देख लो, . सेवक भेष बनाकर आये थे, काम के वक्त नदारद हो, फायदे किसमें ज्यादा है, वही फरमान सुनाते हो, . नालायकी देखकर, कार्यकर्ता इकट्ठे कर, पहले धौंस जमाते हो, पहन सफेद वस्त्र, मुर्दा हो दर्शाते हो, . सेवक होने की आड में जीवंत हो सबसे ज्यादा. समर्थन बीस का. अस्सी विरोध को, बट्टा लगाकर छाँट देते हो. . वैद्य महेन्द्र सिंह हंस

महिला और क्षमता

बोझिल हुई नार आज यो माणस हुया लाचार या नार ठाड बंधावै सै, आधे काम बाहर के ठावँ बर्तन भांडे सब चमकावे. फेर भी झाड झाड बैरी, आखिरकार अबला पावै, एक चुटकी सिंदूर मांग की, दुनिया तै लड़ जावे, बाँध कफ़न यो लाल जणै, उसै की या फेर लाज़ करे, निश दिन महनत करकै, बाबू जी सा *श्रृंगार करै, परिवार की लाज बचावण खातर, वा सावत्री बन लड जावै, फेर भी डायण कहै यो समाज, वा कतही जडामूल तै मरगी, नुखस फेर भी वा सह लेती, माणस नै लटक जाण दे दी, विधवा बैरण कतई मर गी. छूटे सब श्रृंगार आज वा, मुहर्त मह बैठन तै रहगी. शुभ कर्म करें आज तिह, कुणबे खातिर करते करते आखिर कार लाचार कहागी, वैद्य महेन्द्र सिंह हंस