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Showing posts from May 17, 2020

विरोध या समर्थन/पक्ष या विपक्ष

निंदा यानि आलोचना तर्क-वितर्क विरोध या समर्थन, पक्ष या विपक्ष ये सब व्यवाहरिक कड़ियांं दो छौर जिनके बीच व्यवहार होता है गति प्रगति के लिए दोनों आवश्यक. लेकिन बीच का मार्ग अवरुद्ध ना हो. तब सिक्का पूरे का पूरा तुम्हारा है. हैड या टेल सिर्फ़ आरंभ का आगाज़ मात्र जब विरोध या समर्थन की बात आती है आदमी की मंशा बाहर आती है. वह बाह्य सह-संबंध खोजता है. फायदे किसमें ज्यादा है. जैसे जाति/वर्ण/धर्म समुदाय लेनदेन/काट-छांट फिर *विरोध या *समर्थन अब व्यवहार के पहिये राजनीति/धर्म/चरित्र/आदत/व्यवसाय सबके सब जैसे विरोध वा समर्थन के ??? जैसे चुम्बकीय क्षेत्र दो विरोधी जैसे विदेशी यात्रा पर. मानों चाल थम सी गई हो. क्यों ? भारत एक संवैधानिक लोकतांत्रिक देश है. यहां व्यवस्था दो दलीय न होकर. बहु-दलीय व्यवस्था .....???? विरोध वा समर्थन के जिंदा उदाहरण. पक्ष या विपक्ष अपनी जवाबदेही/जिम्मेदारी समझे.

अदृश्य शक्तियां

अदृश्य शक्तियों से लडना, और डरकर भाग जाना, किसी ईश्वर, अल्लाह, मसीह को रक्षक मान कर वह आपकी रक्षा, मनोबल,उन्नति, सफलता का ठेकेदार बनेगा, प्रथम दृष्टया हार मान लेना जैसे होगा, आस्था वा विश्वास प्रक्रिया बिन किये अपना मान लेना, किसी एक के खाना खाने से शेष परिवार का पेट भर जाने जैसा होगा, हाँ कुछ वर्ग जैसे वृद्ध, असहाय, मंदबुद्धि तर्क-वितर्क की क्षमता के विहीन आलसी, तामसिक मनुष्य अंध-श्रृद्धा रखकर हिम्मत प्राप्त कर सकते है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में जो साक्षर लोग इस पंक्ति के प्रारंभिक पायदान के आरंभ में खडें है, व्यवसायी, बिजनेस मैन स्व-व्यवसायी और नौकरी यानि नौकर, इसमें सबसे अधिक लोग नौकर मानसिकता के है. खुद को सिक्योर यानि आपदा रहित मानते है, यहाँ से हार्डवर्कर और स्मार्ट वर्कर की श्रेणी शुरू होती है, अब आप ही सोचें समझे. आप धार्मिक क्यों है, आप आस्तिक क्यों है, आजतक आप से पहले जो प्रश्न हल हो जाने चाहिए थे, आज भी क्यों खड़े है, 👇 कबीर साहेब का दोहा सटीक बैठता है, कबीर भाषा अटपटी,  झटपट लखि न जाय, जै झटपट लख जाय, सब खटपट मिट जाय.

पत्राचार बनाम ईमेल

पत्र के अंत में लिखा जाना, 👇 बाकि आप स्वयं समझदार हैं, और क्या लिखूं ... ईमेल से गायब है, भारतीय डाक का स्थान भले इंटरनेट ने ले लिया हो लेकिन भावनाओं के इंटरनेट से अभी भी काफी पीछे, हिचकियों का आना, कोई याद कर रहा समझ जाना, बॉडी लैंग्वेज आदमी की आँख फड़कने पर, फल शुभाशुभ दायी/बाई पर लिंगभेद प्रभावी, घर से निकलना ..किसी का छींक देना. श्लोगन बनना, छींकत खाइये छींकत नहाइये, छींकत मत जाइये, एक मानसिक आधार पैदा कर, पहले ही परिणाम सुनिश्चित कर लेना, हमारी पुरानी आदत है, घर से निकलना, भरे घडे का सामने से आना, झट से निकालकर आना, घडे में डालना, खुद को सफल मान मान सकारात्मक हो जाना, आटा गूथना, आगे से तोडकर जरा सा पीछे लगा देना, पहली रोटी गाय की, आखरी कुत्ते की, भले जानकारी हो न हो, सबका भला हो, मंशा को जन्म देती थी, चाय का कप लेकर हाथ में, ऊँगली डूबाकर, धरती पर छींटे मारना, भले मालूम नहीं, आधार कोई हो न हो, चाय की तासीर गर्म है के ठंडी जरूर बताती है, तुलसी, वट,पीपल को पूजना, भले यांत्रिक हो, लेकिन शरीर के लिए अच्छे है अवश्य बताते हैं, यादगार लम्हें जिंदगी थम सी