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मजदूर की व्यथा

तलाश

दो रोटी की आश में सुकून की तलाश में दर दर भटकता रहा दो रोटी की आश में स्वाभिमान लिए मन में हुनर था हाथ में जमीर लिये साथ में दो रोटी की आश में कुछ प्रमाण-पत्र थे मेरे पास में जाति प्रभावी देश में आस्था बस्ती जहां भेष में दो रोटी की आश में कहते है कर्म से श्रेष्ठ हो, जन्म से निकृष्ट शूद्र अछूत हो, मंदिर में प्रवेश नहीं, आओ चाहे जिस भेष में, मनोबल जहाँ बढता हो, पतित से पावन हो, धोखा है वहाँ पर भी, पहचानता जो तन से नहीं पहनावे से पहचान हो. दो रोटी की आश में देखकर थकती सांस को, त्याग हुआ जो था साथ में दो गज जमीं न थी पास में आत्मनिर्भर था, लगा रहा दो रोटी की आश में, दो गज जमीं की तलाश में, महेन्द्र सिंह हंस

आत्मनिर्भर भारत योजना की आड़

सरकारी नई योजना की आत्मा ************************ आत्मनिर्भर_भारत से तात्पर्य सभी अपने पुस्तैनी धंधे संभाले और देशहित राष्ट्रवाद में आहुति दे. . इन झूठे/पाखंड/बेईमान सत्ताधारियों का यही देशहित/राष्ट्रवाद में प्रचार . अज्ञात भय के कारण ***************** क्रोध वा कट्टरता का जनक अज्ञात भय होता है, फिर वह चाहे कमी छुपाने के मकसद से हो या प्राण रक्षा हेतू सम्पदाओं पर एकाधिकार के लिये हो, कुछ खोने के डर मात्र के लिए हो, 👉 अज्ञात भय 👈 सभ्यता/संस्कृति/रीति/परंपरा की आड़ में फूट डालने वा खुद के परिचय में बाधा के मकसद से हो, ताकि मजहब खंड-खंड रहे. मेरा ऐसा मानना है. और धरातल पर भी यही नजर आता है. . Metaphysics statics Beyond the mind 🖕✍️

एक सोच एक विचार एक संदेश

एक *व्यवहार तक सोचना तो *ठीक है, अन्य के बारे में जानकारी तक भी ठीक है, एक बात तो तय है और वो ये कि:- *धार्मिक आदमी पत्थर/ठीकर, पशु-पक्षी, जीव-जंतु में उस सर्वशक्तिमान को महसूस कर लेता है, लेकिन दीनहीन/कमजोर/असहाय महसूस कर रहे व्यक्ति में उसके दर्शन करना भूल जाता है, परिणाम मनुष्य में भेद कर चंद चालाक लोग अपने हिस्सा पक्का कर लेता है, ये जो प्रतिक्रिया आपस में नेता एवं पार्टियां संगठन प्रस्तुत कर रहे है, लोकतंत्र में उदाहरण हो ही नहीं सकते, राजतंत्र भी नहीं, चारों स्तंभ जैसे ध्वस्त हो चुके हो, . धर्म एक तरह का अभ्यास है, धर्म की आड़ में राजनीति भूखे लोगों का पेट कैसे भर सकती है, भारत की जनसंख्या ही उसकी ताकत है, जिस कारण आज वैश्विक नजर भारत पर है, एक साथ इतने उपभोक्ता, मानव- संसाधन जहाँ संभावनाएं जैसे स्वर्ग खदान हो, पारदर्शिता का अभाव जैसे आज भी झूठे काल्पनिक तथाकथित अदृश्य शक्ति के कारण सब घटित हो रहा हो, वर्तमान *परिदृश्य "मुँह में राम बगल में छुरी" आप भूखे है और मांगने पर भी रोटी ना मिले, रोटी छीनने को क्रांति का बिगुल समझे. इतिहास गवाह है. आप क...

विरोध या समर्थन/पक्ष या विपक्ष

निंदा यानि आलोचना तर्क-वितर्क विरोध या समर्थन, पक्ष या विपक्ष ये सब व्यवाहरिक कड़ियांं दो छौर जिनके बीच व्यवहार होता है गति प्रगति के लिए दोनों आवश्यक. लेकिन बीच का मार्ग अवरुद्ध ना हो. तब सिक्का पूरे का पूरा तुम्हारा है. हैड या टेल सिर्फ़ आरंभ का आगाज़ मात्र जब विरोध या समर्थन की बात आती है आदमी की मंशा बाहर आती है. वह बाह्य सह-संबंध खोजता है. फायदे किसमें ज्यादा है. जैसे जाति/वर्ण/धर्म समुदाय लेनदेन/काट-छांट फिर *विरोध या *समर्थन अब व्यवहार के पहिये राजनीति/धर्म/चरित्र/आदत/व्यवसाय सबके सब जैसे विरोध वा समर्थन के ??? जैसे चुम्बकीय क्षेत्र दो विरोधी जैसे विदेशी यात्रा पर. मानों चाल थम सी गई हो. क्यों ? भारत एक संवैधानिक लोकतांत्रिक देश है. यहां व्यवस्था दो दलीय न होकर. बहु-दलीय व्यवस्था .....???? विरोध वा समर्थन के जिंदा उदाहरण. पक्ष या विपक्ष अपनी जवाबदेही/जिम्मेदारी समझे.

अदृश्य शक्तियां

अदृश्य शक्तियों से लडना, और डरकर भाग जाना, किसी ईश्वर, अल्लाह, मसीह को रक्षक मान कर वह आपकी रक्षा, मनोबल,उन्नति, सफलता का ठेकेदार बनेगा, प्रथम दृष्टया हार मान लेना जैसे होगा, आस्था वा विश्वास प्रक्रिया बिन किये अपना मान लेना, किसी एक के खाना खाने से शेष परिवार का पेट भर जाने जैसा होगा, हाँ कुछ वर्ग जैसे वृद्ध, असहाय, मंदबुद्धि तर्क-वितर्क की क्षमता के विहीन आलसी, तामसिक मनुष्य अंध-श्रृद्धा रखकर हिम्मत प्राप्त कर सकते है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में जो साक्षर लोग इस पंक्ति के प्रारंभिक पायदान के आरंभ में खडें है, व्यवसायी, बिजनेस मैन स्व-व्यवसायी और नौकरी यानि नौकर, इसमें सबसे अधिक लोग नौकर मानसिकता के है. खुद को सिक्योर यानि आपदा रहित मानते है, यहाँ से हार्डवर्कर और स्मार्ट वर्कर की श्रेणी शुरू होती है, अब आप ही सोचें समझे. आप धार्मिक क्यों है, आप आस्तिक क्यों है, आजतक आप से पहले जो प्रश्न हल हो जाने चाहिए थे, आज भी क्यों खड़े है, 👇 कबीर साहेब का दोहा सटीक बैठता है, कबीर भाषा अटपटी,  झटपट लखि न जाय, जै झटपट लख जाय, सब खटपट मिट जाय.

पत्राचार बनाम ईमेल

पत्र के अंत में लिखा जाना, 👇 बाकि आप स्वयं समझदार हैं, और क्या लिखूं ... ईमेल से गायब है, भारतीय डाक का स्थान भले इंटरनेट ने ले लिया हो लेकिन भावनाओं के इंटरनेट से अभी भी काफी पीछे, हिचकियों का आना, कोई याद कर रहा समझ जाना, बॉडी लैंग्वेज आदमी की आँख फड़कने पर, फल शुभाशुभ दायी/बाई पर लिंगभेद प्रभावी, घर से निकलना ..किसी का छींक देना. श्लोगन बनना, छींकत खाइये छींकत नहाइये, छींकत मत जाइये, एक मानसिक आधार पैदा कर, पहले ही परिणाम सुनिश्चित कर लेना, हमारी पुरानी आदत है, घर से निकलना, भरे घडे का सामने से आना, झट से निकालकर आना, घडे में डालना, खुद को सफल मान मान सकारात्मक हो जाना, आटा गूथना, आगे से तोडकर जरा सा पीछे लगा देना, पहली रोटी गाय की, आखरी कुत्ते की, भले जानकारी हो न हो, सबका भला हो, मंशा को जन्म देती थी, चाय का कप लेकर हाथ में, ऊँगली डूबाकर, धरती पर छींटे मारना, भले मालूम नहीं, आधार कोई हो न हो, चाय की तासीर गर्म है के ठंडी जरूर बताती है, तुलसी, वट,पीपल को पूजना, भले यांत्रिक हो, लेकिन शरीर के लिए अच्छे है अवश्य बताते हैं, यादगार लम्हें जिंदगी थम सी...

भिक्षु

कुछ सिखना हो कोई जरूरत हो भिक्षा-पात्र खाली ले जाना, दातार पर भरोसा हो, खाली वापिस नहीं भेजता. . तुम्हारे त्याग की परीक्षा होगी, तुम ब्रह्मांड के मालिक हो. मिलेगा वही. जितनी तुम्हारी तैयारी है. . फैल गये संदेश प्रेम का लेकर, जहां तक संभव तमस दूर हो, नहीं डरे रहे डटे न लड़े न भागे वरन् परिस्थितियों के प्रति जागे .