चैन भी बेचैन

चैन भी बेचैन
जागे सारी रैन
रैन बसेरा
सोये सुबेरा
छूट गया सहारा
चुके न कर्ज़
भूल गये फर्ज़
सिखना तर्क
पकड सको मर्ज
ये मृत्यु नहीं,
हत्या है.
भूखे भी प्यासे भी,
विलुप्त साधन संसाधन,
थाली बजे,
पैदाइश गायब,
ताली बजाते.
डरे हुए सब,
मोमबत्तियां जले
फूटते पटाखे
वंचितों के अधिकार,
हाशिये पर लगे,
गिरते है फूल
गिरे जिनके लिए,
बोझिल झोली,
न सिर्फ़ फटी,
दुबारा सिल न सकी,
प्रकृति ने जिसे,
सबको दिया,
खुली हवा,
लाल सूरज,
लिया छुपा,
ये मृत्यु सहज नहीं,
सरेआम हत्या है.
हंस जो निहत्था है.

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