नेता सेवक कैसे

दे न पाये जो व्यवस्था,
छीन ले जो रोटियां,
बोटियाँ तुम्हें मुबारक,
जो हमारा है वही दे दो,
.
तुम्हें तमगे चाहिए ले लो,
तमाशा न करो,
तमाचा भी बनता है,
आम जनता से मिलकर देख लो,
.
सेवक भेष बनाकर आये थे,
काम के वक्त नदारद हो,
फायदे किसमें ज्यादा है,
वही फरमान सुनाते हो,
.
नालायकी देखकर,
कार्यकर्ता इकट्ठे कर,
पहले धौंस जमाते हो,
पहन सफेद वस्त्र,
मुर्दा हो दर्शाते हो,
.
सेवक होने की आड में
जीवंत हो सबसे ज्यादा.
समर्थन बीस का.
अस्सी विरोध को,
बट्टा लगाकर छाँट देते हो.
.
वैद्य महेन्द्र सिंह हंस

Comments

मजदूर की व्यथा

अदृश्य शक्तियां

एक सोच एक विचार एक संदेश

विरोध या समर्थन/पक्ष या विपक्ष

भिक्षु

पत्राचार बनाम ईमेल

तलाश

आत्मनिर्भर भारत योजना की आड़

परीक्षा

संपादकीय कोविड19 पर दो बुद्धिजीवी.

मजदूर की व्यथा