सिक्के व्यवहारिक होते है (लेख)

भले सिक्के जिंदगी में व्यवहारिक होते हैं,
वे भी केवल मनुष्यों में,
परिवार/समाज/देश/विदेश/मुद्रा पर व्यवहार चलन में है,
बात तोलने की हो,
बात पहलुओं की हो,
बात क्षमता की हो,
बात सिक्कों के खनक की हो,
बात ईमान/बेईमानी की हो,
बात संपदा/वैभव/राजपाट की हो,
कहावत :-
जिसके कमलेविच् दाने.. उसके पगले भी सियाणे.
बात विचारधारा/चलन/रीत-रिवाज/धार्मिक-आधार इससे वंचित नहीं है.

धार्मिक ठगी,
जगजाहिर है, कर्म के आधार पर विभाजन हो,
या जातिगत आधार.
सबके पीछे मूलभूत आधार सिक्के ही है.
प्रथा चाहे विधान/मनुस्मृति जनेऊ-क्रांति हो,
जमींदार-प्रथा हो, स्त्रियों को दाँव पर लगाने की हो,
या फिर ढोर यानि आधार गाय या गोपाल की लीला केंद्र हो,
भेदभाव के पर्दे के पीछे आधार चंद सिक्कों के खनक की ही मिलेगी,
शूद्र वर्ग के लोगों और उनकी विवाहताओं पर प्रथम अधिकार जनेऊधारी का होगा,
न उन्हें संपत्ति संपदा तो दूर की बात,
सार्वजनिक स्थलों पर जाने की रोक,
बल्कि बहिष्कृत कर जंगलों या असुरक्षित स्थानों पर रहने को मजबूर किया गया,
वैसे तो वो बलिष्ठ थे,
लेकिन मानसिकता को कुचला गया,
ताकि वे हीनभावना से ग्रसित रहेंं,
और अपने अधिकारों से वंचित बने रहे,

सिक्कों की खनक वा स्त्रियों के पीछे की ठगी बनी रहे उसके लिए...
तथाकथित एक अदृश्य ईश्वर की कल्पना कर स्थापित किया गया,
विभिन्न प्रकार के साहित्य/ग्रंथ/स्मृतियों की रचना की गई, और उन पर तर्क न करने का आडम्बर रचा गया.
ताकि इसे सनातन वा शाश्वत सत्य घोषित किया जा सके.
नतीजन आधार गुलामी बना,

सिक्कों की खनक और वैभव प्रमादी/व्याभिचारी राज करें,
लडाई झगड़े का कारण भले रंगभेद बने, पूँजीवाद, या औधोगीकरण मालिक एवम् मजदूर, फासीवादी या नाजीवादी आधार तथाकथित धार्मिक और हकों को माँगने को लेकर ही रहा,

मनुष्य द्वारा निर्धारित रचनाओं और
प्रकृति और अस्तित्व को जानने के पीछे के सभी मार्ग अवरुद्ध किए गये.
न भारत "मन की कीमिया" पर खोज कर सका.
न ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देख पाया.
भारत का अतीत गुलाम रहा,
वर्तमान परिवेश एक विकासशील देश के रुप मे.
जो भी समाज सुधारक पैदा हुये
उनका ब्राह्मणीकरण कर दिया गया,
धर्म आजाद नहीं करता.
गुलाम ही रखता है,
शिक्षा जैसे क्षेत्रों को भी धर्म से जोड़ें रखना,
शारदे, सरस्वती, वाणी/वीणा/लीला हुनर को लील तो सकती है,
ज्ञान-इंद्रियां/कर्म-इंद्रियां सभी का दशानन/गणपति/गणेश के आदि समागम पूजा/अर्चना/आराधना से भला.
कैसे भला संभव है.

मन पर कंट्रोल का रिमोट कंट्रोल.
किसी ओर के अधीन,
स्वतंत्रता की परिकल्पना बेईमानी ही होगी,

एक मई विश्व मजदूर दिवस
तभी साकार हो सकता है.
जब मनुष्य के मन को स्वतंत्रता के नये आयाम दिये जाये.

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