साँस बिन प्राण

सांस ही गवाह है गर
जीवंत होने के आयाम
ये ढेरों घूमते बेजुबान
करते नहीं *प्राणायाम.
.
माँगते नहीं खोजते हैं,
मीलों घूम घूमकर,
खाते है घास फूँस,
मारे गये चुन चुनकर.
.
कल का जिक्र इतिहास था,
कल की चर्चा भविष्य भी,
वर्तमान कल का किस्सा है
भविष्य वर्तमान के क्षण भी.

Comments

मजदूर की व्यथा

अदृश्य शक्तियां

एक सोच एक विचार एक संदेश

विरोध या समर्थन/पक्ष या विपक्ष

भिक्षु

तलाश

पत्राचार बनाम ईमेल

आत्मनिर्भर भारत योजना की आड़

परीक्षा

संपादकीय कोविड19 पर दो बुद्धिजीवी.

मजदूर की व्यथा